Sunday, November 20, 2016

"Anti" सोशल नेटवर्किंग

पिछले कुछ वर्षो में इन्टरनेट सोशल नेटवर्किंग ने बहुत लोगो को जोड़ा है ! सबका कारन अलग अलग हो  सकता है। किसी का टाइमपास, किसी का बिज़नस , किसी का पर्सनल इत्यादि। लेकिन जब से इन्टरनेट का इस्तेमाल राजनीतिक कारणों से होने लगा तो ये स्थिति काफी भयावह हो गयी है। लोगो ने इसे नफरत फ़ैलाने का जरिया बना लिया है। हम किसी एक आदमी को पसंद करते है , तो बिना कारन उसके हर कार्य की तारीफ करना और दुसरे व्यक्ति की हर पहल और कोशिश का विरोध करना।  विरोध करना ठीक है , लेकिन उसे अपशब्द कहना, उसे धमकिया देना और उसे नफरत की निगाह से देखना , ये वाकई हमारे समाज को अंधकार में ले जाने की तरफ कोशिशें लगती है। क्या हमारे स्वतंत्रा सेनानी अलग अलग पथ से इस देश  के लिए नहीं लड़ रहे थे? क्या उनके विचारो में मतभेद नहीं थे? लेकिन क्या वो इस तरह कभी नफरत किया करते थे ? नहीं।

एंकर नावेद ने क्या खूब कहा "अगर आप किसी व्यवस्था के पक्ष में हैं , तो उसका विरोध करने वालो की तकलीफ को एक बार देखे, समझे, उन्हें सिरे से ख़ारिज न करे।  हो सकता है आपका विचार बदल जाये।  और अगर आप किसी व्यवस्था के विरोध में हैं , तो एक बार उस व्यवस्था के दूरगामी परिणामो के बारे में गहन चिंतन कीजिये, केवल लाठी उठाके विरोध मत शुरू कीजिये।  हो सकता है , आपका विचार भी बदल जाये। "


मुझे अब लगता है, मुझे भी लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग माध्यमो से थोड़ा अब दूर हो जाना चाहिए।  जिस वजह से इससे जुड़े थे, अब वो वजह नज़र नहीं आती। मुझे अफ़सोस अपने उन शिक्षित दोस्तों के लिए भी होता है जो बिना सोचे, जाने , बस एक "फेक" खबर को सच जान लेते हैं , और उसे फ़ैलाने में और उसपे अपनी "कीमती" राय देने में कोई तकलीफ नहीं समझते।

एक नागरिक होने के नाते ये हमारा फ़र्ज़ है के हम ऐसी झूटी खबरों को ना फैलाये जब तक के आपको पूरा इत्मीनान न हो।  आजकल एक नया दानव इन्टरनेट पे चर्चित है जिसे हम "इंटरनेट ट्रोल " कहते हैं।  ये बहुत ही घातक है। बिना किसी सबूत के झूटी खबरे फैलाना, अपने पक्ष के आदमी को सुपर हीरो बनाना , उसके हर नाज़ायज़ काम को ठीक साबित करना , और दुसरे पक्ष को किसी भी तरह बेइज़्ज़त करना। ये सब इस ट्रोल के काम हैं।

मैं हर एक की ज़िम्मेदारी तो नहीं ले सकता या उनके पकड़ पकड़ के समझा सकता हूँ।  हाँ, मैं खुद को इस मिडिया से दूर रखना चाहता हूँ। और बस वही मिडिया का साधन पसंद करना चाहता हूँ, जो इस समाज को आगे बढ़ने में मदद करे, उसके वैल्यूज को उठाने में मदद करे।

मैं अपने उन तमाम दोस्तों से ये निवेदन करना चाहता हूँ, के आप अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा के साथ साथ , अच्छी नैतिक शिक्षा दें।  आज हमारे आस पास अच्छाई बुराई ख़तम होती जा रही है , सच और झूट का फर्क मिटता जा रहा है।  "क्या फर्क पड़ता है ", जुमला आम हो गया है।  मेरे पडोसी के घर चोरी हुई है , मुझे क्या फर्क पड़ता है। आपसी संवेदना ख़तम हो गयी है।  ये वो समाज नहीं जिसकी कल्पना हम करते है।
बाकि आप लोग समझदार है ही , अपनी ज़िम्मेदारी खुद समझते है।

चलते चलते एक और बात कहते चलु, फेसबुक या वाट्सअप पे "hi hello " करने से बेहतर है, आप मुझसे पर्सनली आके मिले। मेरे घर या मेरे दफ्तर या किसी चाय की थड़ी पे।  वो सोशल नेटवर्क जो हमारे बुजुर्गो ने बनाया है वो कही बेहतर  है इस आभासी इन्टरनेट के सोशल नेटवर्क से।

असलम बारी